Thursday, June 11, 2009

Perface of the 2nd Edition of Meri Awaz Suno, the first biography of Mohammad Rafi

अपनी बात
एक लेखक के लिये इससे बड़ा और क्या ईनाम और संतोष हो सकता है कि अपने जीवन के अंतिम चरण से गुजर रही कोई महिला यह पुस्तक पढ़ने के बाद खास तौर पर टेलीफोन करके बताये कि पुस्तक पढ़कर उसका जीवन धन्य हो गया और पुस्तक लिखकर लेखक ने उस जैसे रफी प्रेमियों पर अहसान किया है। अमृतसर में रहने वाली इस महिला ने अपनी पुत्राी के मार्फत यह पुस्तक मंगाई और खुद उसी के शब्दों में उसने यह पुस्तक एक बार नहीं, कई बार पढ़ी। अपने माता-पिता से दूर किसी दूसरे शहर में काॅलेज के छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने वाला एक छात्रा छुट्टियों में केवल इस कारण अपना घर नहीं गया क्योंकि उसे यह डर था कि कहीं अगर वह घर चला गया तो कूरियर से भेजी जाने वाली पुस्तक उसके हाथ नहीं लगे। सूरीनाम में रहने वाले एक रफी प्रेमी ने इस पुस्तक को हासिल करने के लिये दिल्ली आने का कार्यक्रम बना लिया। कई लोग डाक या कूरियर का इंतजार किये बगैर पुस्तक लेने के लिए खुद दिल्ली पहुंच गये। यह अक्सर कहा जाता है कि युवा पीढ़ी हिमेश रेशमिया जैसे गायकों की दीवानी है लेकिन 20 साल से कम उम्र के कई किशोरों में इस पुस्तक को पाने तथा पढ़ने के प्रति जो ललक दिखी, उसे बयान करना मुश्किल है। इन सब उदाहरणों का जिक्र करने का मकसद खुद मियां मिट्ठू बनना नहीं है बल्कि उस जादू को सामने रखना है जो आज भी लोगों के दिलो-दिमाग पर सर चढ़कर बोल रहा है। यह जादू किसी और का नहीं, मोहम्मद रफी की दिलकश आवाज़ एवं उनके व्यक्तित्व का है। मोबाइल, इंटरनेट, टेलीविजन और सैटेलाइट रेडियो के जमाने में जब हर दिन मनोरंजन और जानकारियों के एक से बढ़कर एक माध्यम सामने आ रहे हैं और लोग पुस्तकों से कटते जा रहे हैं, वैसे में किसी पुस्तक के प्रति इस कदर की बेकरारी विस्मयकारी है। मुझे अपने लेखन को लेकर किसी तरह का गुमान नहीं है, इसलिये मुझे पता है कि इस पुस्तक के प्रति पाठकों खास तौर पर संगीत प्रेमियों एवं रफी के दीवानों की दिलचस्पी मोहम्मद रफी को ज्यादा से ज्यादा जानने के जुनून का नतीजा है। रफी प्रेमियों के लिये वह केवल एक गायक नहीं, एक ऐसा जज्बा है जिसके लिये कुछ भी कर गुजरना कुछ भी नहीं है। ऐसे लोग मोहम्मद रफी के बारे में छोटी-छोटी जानकारियों, उनके फोटोग्राफ एवं गाने को जुटाने के लिये दिन-रात एक कर देते हैं। ऐसे में अगर उन्हें मोहम्मद रफी पर कोई पुस्तक मिल जाये तो क्या कहना! दुर्भाग्य से इस सच को न तो सरकारी और न ही निजी प्रकाशकों ने समझा। पुस्तक छपने के एक महीने से भी कम समय के भीतर ही मार्केटिंग, नेटवर्किंग और वितरण व्यवस्था के बगैर पुस्तक की लगभग सारी प्रतियों का बिक जाना और इस पुस्तक की भारी मांग को देखते हुये इसका दूसरा संस्करण निकाला जाना उन सरकारी एवं निजी प्रकाशकों की जनरुचियों और व्यावसायिक समझ पर सवालिया निशान है जो दुनिया भर के आलतू-फालतू विषयों पर अपठनीय एवं अबूझ पुस्तकें निकालते रहते हैं और देश भर के पुस्तकालयों की दीमकों के लिये आहार मुहैया कराते रहते हैं और साथ ही साथ पुस्तकों के प्रति लोगों की रुचियां खत्म हो जाने का रोना रोते रहते हैं। भारत में अलग-अलग भाषाओं में हजारों क्या लाखों की संख्या में प्रकाशक हैं जिन्होंने अब तक करोड़ांे टाइटिलों की पुस्तकें निकाली हैं। लेकिन इसे क्या कहा जाये कि पिछले तीन से चार दशक से अधिक समय के दौरान इन लाखों प्रकाशकों में से किसी भी एक प्रकाशक के मन में उस शख्सियत पर किताब निकालने का ध्यान नहीं आया जो अपनी आवाज के जरिये लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों पर राज कर रहा है और उनके लिये प्रेरणास्रोत बना हुआ है। सच कहा जाये तो यह दुर्भाग्य उस शख्सियत का और उसके चाहने वालो का नहीं है बल्कि खुद इन प्रकाशकों का है। मोहम्मद रफी की उपेक्षा न केवल प्रकाशन के स्तर पर बल्कि अन्य कई स्तरों पर हुयी है। उनके कैरियर के अंतिम दौर में उन्हीं संगीतकारों, अभिनेताओं और निर्माता-निर्देशकों ने उनकी उपेक्षा की, जिन्हें उन्होंने अपनी आवाज की बदौलत कामयाबियों की बुलंदियों तक पहुंचाया था। न तो सरकारी और न ही गैर सरकारी स्तर पर उनके योगदानों का सही तरह से मूल्यांकन हुआ और न ही उन्हें वह सम्मान दिया गया जिसके वह वाकई हकदार थे। भारत सरकार ने उन्हें केवल पद्मश्री से सम्मानित किया जबकि उनके समकालीन गायक-गायिकाओं में से कई को भारत रत्न और दादा साहब फाल्के पुरस्कार जैसे सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। आम तौर पर लोग मोहम्मद रफी को बेहतरीन गायक या बेहतरीन इंसान के रूप में याद करते हैं जबकि वह इससे कहीं अधिक हैं- वह साम्प्रदायिक सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता एवं राष्ट्रीय अखंडता के प्रतीक हैं। एक गायक का मूल्यांकन एक गायक के रूप में हो, इसमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन साम्प्रदायिक सद्भाव में उसके योगदानों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिये। मोहम्मद रफी बड़े गायक थे अथवा लता, किशोर, मुकेश या कोई अन्य, इस विषय पर लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है लेकिन इस बात पर शायद ही कोई विवाद हो कि गायकों में तो क्या, सम्पूर्ण फिल्मी हस्तियों में साम्प्रदायिक सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय अखंडता का सबसे बड़ा प्रतीक अगर कोई है तो वह है मोहम्मद रफी लेकिन धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली सरकार और साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने का दावा करने वाले राजनीतिक दलों एवं सरकारी-गैर सरकारी संगठनों ने इस प्रतीक की अनदेखी कर दी। इनसे एक सवाल पूछने का मन करता है कि साम्प्रदायिक एकता एवं धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक के रूप में उनके पास कौन-कौन से नाम हैं और क्या रफी के योगदान एवं भारतीय जनमानस पर उनके प्रभाव अन्य नामों से किसी तरह से कम हंै? अगर ऐसा नहीं है तो आखिर हर गली, हर चैराहे, हर संस्थान एवं हर प्रतिष्ठान को किसी न किसी के नाम से जोड़ देने वाले इस देश में कोई स्मारक, कोई पुस्तकालय और कोई संस्थान मोहम्मद रफी के नाम से स्थापित करने के बारे में कोई पहल क्यों नहीं हुयी? हालांकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान रफी के योगदानों को समझने की दिशा में कुछ स्तरों से कोशिशें शुरू हुयी हैं। यह पुस्तक भी इसी दिशा में एक विनम्र कोशिश है और यह पाठकों को तय करना है कि यह कोशिश कितनी सार्थक रही। हमें इस बात का खेद है कि खराब नेटवर्किंग एवं वितरण व्यवस्था के कारण यह पुस्तक बाजार में उपलब्ध नहीं करायी जा सकी। कई लोगों को यह पुस्तक हासिल करने के लिये काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई लोगों को तो दूसरे शहरों या कस्बों से यह पुस्तक प्राप्त करने के लिये दिल्ली आना पड़ा या दिल्ली में रहने वाले रिश्तेदारों/दोस्तों के मार्फत मंगानी पड़ी। इस पुस्तक के पहले संस्करण की प्रतियांें के समाप्त हो जाने के कारण काफी संगीत प्रेमियों को यह पुस्तक उपलब्ध नहीं हो पायी। इस पुस्तक के लिये संगीत प्रेमियों को जो दिक्कतें उठानी पड़ीं उसके लिये हमें खेद है और पुस्तक के दूसरे संस्करण के साथ ऐसी दिक्कतें नहीं हांे इसकी पूरी कोशिश की जायेगी। फिर भी तमाम दिक्कतों एवं कमियों के बावजूद बहुत कम समय के भीतर देश के विभिन्न शहरों यहाँ तक कि दूसरे देशों में रहने वाले काफी संगीतप्रेमियों तक यह पुस्तक पहुंच गयी। इसके लिये लेखक खास तौर पर ूूूण्उवीकतंपिण्बवउ एवं ूूूण्मजमतदंसतंपिण्बवउ के संचालकों का आभारी है जिन्होंने उक्त साइटों पर इस पुस्तक के बारे में विस्तृत जानकारियां प्रसारित कीं। इस पुस्तक के पहले संस्करण के वितरण में विशेष योगदान के लिये लेखक बिन्नू नैयर, उमेश माखीजा, पी नारायणन, जोरावर चुगानी और त्रिलोकी नाथ जैसे रफी प्रेमियों का खास तौर पर आभारी है। इस पुस्तक के लिये पी नारायणन ने बेंगलूर और शशांक चिकरमने ने मुंबई से दुर्लभ सामग्रियाँ एवं जानकारियाँ भेजीं। इस दूसरे संस्करण में उन त्रुटियों एवं कमियों को दूर कर दिया गया है जो पहले संस्करण में जल्दबाजी के कारण रह गयी थीं। इसके लिये हम संगीत में खास रुचि रखने वाले पत्राकार अजय विश्वकर्मा के आभारी हैं। नये संस्करण में कुछ नयी सामग्रियाँ एवं जानकारियाँ डाली गयी हंै। इसके बावजूद एक लेखक के तौर पर मुझे लगता है कि अभी भी ऐसी काफी जानकारियाँ एवं सामग्रियाँ हैं जो इस दूसरे संस्करण में भी आने से रह गयी हैं। इसका कारण एक लेखक की अपनी सीमायें हैं। इसका एक दूसरा कारण यह है कि मोहम्मद रफी के विविध आयामी गायन एवं व्यक्तित्व को किसी पुस्तक में समेटना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है, फिर भी अगर संगीत प्रेमियों को इस पुस्तक को पढ़ कर मोहम्मद रफी के बारे में जानने की प्यास थोड़ी सी भी बुझ पाये तो मैं अपनी मेहनत सफल समझूँगा।
- विनोद विप्लव
जनवरी, 2008

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