Tuesday, November 15, 2011
New biography of Mohammad Rafi
This biography has been written by Lucknow based writer and journalist Chaudhary Zia Imam and published by Harper Collins.
In this vivid biography, Zia Imam tells us things we never knew about the greatest playback singer
India’s Hindi film industry has ever had.
In This biography their are detail and discussion about the first biography of Rafi Sahab.
Thursday, June 11, 2009
List of Contents of Meri Awaz Suno,
अनुक्रम
अध्याय: एक: मोहम्मद रफी और उनके गीत
1. सिफर से शिखर तक/15
2. गायन के विविध आयाम/28
3. आवाज़ की जादूगरी/48
4. मेरे सुर और तेरे गीत/53
5. नये संगीतकारों को सहारा/87
6. रफी जिनकी आवाज़ बने/97
7. अनजानी शख्सियतों के लिये रफी/104
8. तेरे आने की आस है ऐ दोस्त/108
9. गैर-फिल्मी गीत/113
10.रफी बनाम किशोर/115
अध्याय: दो: मोहम्मद रफी और उनका व्यक्तित्व
1. इंसानियत का शिखर/120
2. जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया/128
3. शौक-ए-रफी/134
अध्याय: तीन: चले आज तुम जहाँ से/
1. हम तो चमन छोड़ चले/139
2. ये ज़िन्दगी के मेले/144
3. हम रह गये अकेले/147
अध्याय: चारः यादें
1. महल उदास और गलियाँ सूनी.../154
2. गीत अश्क बन गये/159
3. तेरे बगैर ज़िंदगी दर्द बनके रह गयी/161
4. तू कहीं दिल के आस-पास है दोस्त/164
5. मेरा भाई मुझसे अलग हो गया/166
6. बिछड़े साथी, तुझे हम याद करते हैं/168
7. तुम सा नहीं देखां/172
पुरस्कार/175
संदर्भ एवं साभार/176
Perface of the 1st edition of Meri Awaz Suno, the first biography of Mohammad Rafi
पहले संस्करण की प्रस्तावना
भारतीय संगीत, खास तौर पर फिल्म संगीत में मोहम्मद रफी के महत्व और जनमानस पर उनके गाये गीतों के दीर्घकालिक असर से हर कोई वाकिफ है। पाश्र्व गायन के सरताज मोहम्मद रफी का महत्व आज केवल इसलिये नहीं है कि उन्होंने हजारों की संख्या में हर तरह के गीत गाये और अपने गीतों के जरिये जिन्दगी के विभिन्न पहलुओं को अभिव्यक्ति दी बल्कि इसलिये भी है कि सामाजिक, जातीय एवं धार्मिक संकीर्णताओं के इस दौर में वह इंसानियत, मानवीय मूल्यों, देशप्रेम, धर्मनिरपेक्षता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव के एक मजबूत प्रतीक हैं। उनके गाये गीत नैतिक, सामाजिक एवं भावनात्मक अवमूल्यन के आज के दौर में जनमानस को इंसानी रिश्तों, नैतिकता और इंसानियत के लिये प्रेरित कर रहे हैं। रफी के गुजरने के कई साल बाद भी उनकी सुरीली आवाज़ का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। उनकी आवाज़ के प्रशंसकों और दीवानों की संख्या लाखों में है और ये केवल भारत में ही नहीं, दुनिया के हर देश में फैले हुए हैं। हम जैसे लोग जो मोहम्मद रफी और उनके समकालीन गायकों की सुरीली आवाजों के बीच ही पले-बढ़े हैं, उन्हें इस बात की कसक रहेगी कि अतीत की स्मृतियों को कायम रखने की किसी पहल के अभाव में आज की पीढ़ी बीते दिनों के अनगिनत सुरीले और मधुर गीतों से कटती जा रही है और अश्लील एवं बेतुके गानों, रीमिक्स, पश्चिमी और पाॅप संगीत के जाल में फँसती जा रही है। व्यावसायिकता और मुनाफा कमाने की होड़ में संगीत कम्पनियाँ आज रीमिक्स की प्रवृत्ति को बढ़ावा देकर भारतीय संगीत के सुरीलेपन को तो नष्ट कर ही रही हैं, नयी पीढ़ी को भी असली संगीत के आनन्द से वंचित कर रही हैं।यह दुर्भाग्य की बात है कि रफी के योगदानों को पहचानने, उन्हें समुचित महत्व देने और उनकी स्मृतियों को जीवित रखने की कोई गंभीर पहल नहीं हो रही हैµन सरकारी स्तर पर, न गैर-सरकारी स्तर पर और न उनके चाहने वालों के स्तर पर। सरकारी स्तर पर रफी के साथ अन्याय हुआ ही लेकिन संगीत प्रेमियों ने भी इस दिशा में कुछ नहीं किया। ऐसा तब है जब रफी के नाम पर देश के हर शहर-हर कस्बे में कोई न कोई संस्था है। कई बड़ी संस्थायें विदेशों में भी है। लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से अधिकतर संस्थाओं का उद्देश्य रफी के जन्मदिन अथवा पुण्य तिथि के दिन संगीत कार्यक्रम करके पैसे कमाना ही रह गया है। अन्यथा क्या कारण है कि उनके गुजरने के 25 साल बाद भी उनकी स्मृति में कोई राष्ट्रीय स्मारक बनाने, गायन के प्रशिक्षण के लिये उनके नाम से कोई संगीत अकादमी बनाने अथवा उनके जीवन एवं गीतों के बारे में एक भी पुस्तक लिखने और प्रकाशित करने की जहमत न तो किसी संगीतप्रेमी और न ही किसी संस्था ने उठायी? इस पुस्तक को लिखने की शुरुआत इस कसक को लेकर हुई कि न केवल अपने समय बल्कि आने वाले सभी समय के इस महानतम गायक के बारे में ऐसी कोई पुस्तक नहीं है, जिसे पढ़कर उनके जीवन और गीतों के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारियाँ मिल सके। यह पुस्तक इसी कमी को दूर करने की एक विनम्र कोशिश का परिणाम है। इस पुस्तक को लिखने की शुरुआत आज से चार साल पहले हुई थी और काफी हद तक यह पुस्तक तैयार भी हो गयी थी, लेकिन कई कारणों से यह काफी विलंब से आपके सामने आ पायी है। अगर मोहम्मद रफी की जीवनी को लोगों के सामने लाने का कोई प्रयास पहले हुआ होता तो संभव है कि यह पुस्तक आपके पास नहीं होती। यह पुस्तक इस अभाव को भरने की कोशिश मात्रा है। हो सकता है कि इस पुस्तक को पढ़कर रफी के बारे में बहुत कुछ जानने वालों, उनके निकट रहे लोगों अथवा फिल्म संगीत के बारे में विशद जानकारियाँ रखने वाले लोगों को इस पुस्तक में कोई नयी चीज नहीं मिले लेकिन अगर यह पुस्तक रफी के हजारों चाहने वालों में से एक भी व्यक्ति के मन में इससे बेहतर पुस्तक लिखने की प्रेरणा जगा सके तो मैं अपनी कोशिश को सार्थक समझूँगा।
- विनोद विप्लव
जुलाई, 2007
Perface of the 2nd Edition of Meri Awaz Suno, the first biography of Mohammad Rafi
अपनी बात
एक लेखक के लिये इससे बड़ा और क्या ईनाम और संतोष हो सकता है कि अपने जीवन के अंतिम चरण से गुजर रही कोई महिला यह पुस्तक पढ़ने के बाद खास तौर पर टेलीफोन करके बताये कि पुस्तक पढ़कर उसका जीवन धन्य हो गया और पुस्तक लिखकर लेखक ने उस जैसे रफी प्रेमियों पर अहसान किया है। अमृतसर में रहने वाली इस महिला ने अपनी पुत्राी के मार्फत यह पुस्तक मंगाई और खुद उसी के शब्दों में उसने यह पुस्तक एक बार नहीं, कई बार पढ़ी। अपने माता-पिता से दूर किसी दूसरे शहर में काॅलेज के छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने वाला एक छात्रा छुट्टियों में केवल इस कारण अपना घर नहीं गया क्योंकि उसे यह डर था कि कहीं अगर वह घर चला गया तो कूरियर से भेजी जाने वाली पुस्तक उसके हाथ नहीं लगे। सूरीनाम में रहने वाले एक रफी प्रेमी ने इस पुस्तक को हासिल करने के लिये दिल्ली आने का कार्यक्रम बना लिया। कई लोग डाक या कूरियर का इंतजार किये बगैर पुस्तक लेने के लिए खुद दिल्ली पहुंच गये। यह अक्सर कहा जाता है कि युवा पीढ़ी हिमेश रेशमिया जैसे गायकों की दीवानी है लेकिन 20 साल से कम उम्र के कई किशोरों में इस पुस्तक को पाने तथा पढ़ने के प्रति जो ललक दिखी, उसे बयान करना मुश्किल है। इन सब उदाहरणों का जिक्र करने का मकसद खुद मियां मिट्ठू बनना नहीं है बल्कि उस जादू को सामने रखना है जो आज भी लोगों के दिलो-दिमाग पर सर चढ़कर बोल रहा है। यह जादू किसी और का नहीं, मोहम्मद रफी की दिलकश आवाज़ एवं उनके व्यक्तित्व का है। मोबाइल, इंटरनेट, टेलीविजन और सैटेलाइट रेडियो के जमाने में जब हर दिन मनोरंजन और जानकारियों के एक से बढ़कर एक माध्यम सामने आ रहे हैं और लोग पुस्तकों से कटते जा रहे हैं, वैसे में किसी पुस्तक के प्रति इस कदर की बेकरारी विस्मयकारी है। मुझे अपने लेखन को लेकर किसी तरह का गुमान नहीं है, इसलिये मुझे पता है कि इस पुस्तक के प्रति पाठकों खास तौर पर संगीत प्रेमियों एवं रफी के दीवानों की दिलचस्पी मोहम्मद रफी को ज्यादा से ज्यादा जानने के जुनून का नतीजा है। रफी प्रेमियों के लिये वह केवल एक गायक नहीं, एक ऐसा जज्बा है जिसके लिये कुछ भी कर गुजरना कुछ भी नहीं है। ऐसे लोग मोहम्मद रफी के बारे में छोटी-छोटी जानकारियों, उनके फोटोग्राफ एवं गाने को जुटाने के लिये दिन-रात एक कर देते हैं। ऐसे में अगर उन्हें मोहम्मद रफी पर कोई पुस्तक मिल जाये तो क्या कहना! दुर्भाग्य से इस सच को न तो सरकारी और न ही निजी प्रकाशकों ने समझा। पुस्तक छपने के एक महीने से भी कम समय के भीतर ही मार्केटिंग, नेटवर्किंग और वितरण व्यवस्था के बगैर पुस्तक की लगभग सारी प्रतियों का बिक जाना और इस पुस्तक की भारी मांग को देखते हुये इसका दूसरा संस्करण निकाला जाना उन सरकारी एवं निजी प्रकाशकों की जनरुचियों और व्यावसायिक समझ पर सवालिया निशान है जो दुनिया भर के आलतू-फालतू विषयों पर अपठनीय एवं अबूझ पुस्तकें निकालते रहते हैं और देश भर के पुस्तकालयों की दीमकों के लिये आहार मुहैया कराते रहते हैं और साथ ही साथ पुस्तकों के प्रति लोगों की रुचियां खत्म हो जाने का रोना रोते रहते हैं। भारत में अलग-अलग भाषाओं में हजारों क्या लाखों की संख्या में प्रकाशक हैं जिन्होंने अब तक करोड़ांे टाइटिलों की पुस्तकें निकाली हैं। लेकिन इसे क्या कहा जाये कि पिछले तीन से चार दशक से अधिक समय के दौरान इन लाखों प्रकाशकों में से किसी भी एक प्रकाशक के मन में उस शख्सियत पर किताब निकालने का ध्यान नहीं आया जो अपनी आवाज के जरिये लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों पर राज कर रहा है और उनके लिये प्रेरणास्रोत बना हुआ है। सच कहा जाये तो यह दुर्भाग्य उस शख्सियत का और उसके चाहने वालो का नहीं है बल्कि खुद इन प्रकाशकों का है। मोहम्मद रफी की उपेक्षा न केवल प्रकाशन के स्तर पर बल्कि अन्य कई स्तरों पर हुयी है। उनके कैरियर के अंतिम दौर में उन्हीं संगीतकारों, अभिनेताओं और निर्माता-निर्देशकों ने उनकी उपेक्षा की, जिन्हें उन्होंने अपनी आवाज की बदौलत कामयाबियों की बुलंदियों तक पहुंचाया था। न तो सरकारी और न ही गैर सरकारी स्तर पर उनके योगदानों का सही तरह से मूल्यांकन हुआ और न ही उन्हें वह सम्मान दिया गया जिसके वह वाकई हकदार थे। भारत सरकार ने उन्हें केवल पद्मश्री से सम्मानित किया जबकि उनके समकालीन गायक-गायिकाओं में से कई को भारत रत्न और दादा साहब फाल्के पुरस्कार जैसे सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। आम तौर पर लोग मोहम्मद रफी को बेहतरीन गायक या बेहतरीन इंसान के रूप में याद करते हैं जबकि वह इससे कहीं अधिक हैं- वह साम्प्रदायिक सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता एवं राष्ट्रीय अखंडता के प्रतीक हैं। एक गायक का मूल्यांकन एक गायक के रूप में हो, इसमें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन साम्प्रदायिक सद्भाव में उसके योगदानों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिये। मोहम्मद रफी बड़े गायक थे अथवा लता, किशोर, मुकेश या कोई अन्य, इस विषय पर लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है लेकिन इस बात पर शायद ही कोई विवाद हो कि गायकों में तो क्या, सम्पूर्ण फिल्मी हस्तियों में साम्प्रदायिक सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय अखंडता का सबसे बड़ा प्रतीक अगर कोई है तो वह है मोहम्मद रफी लेकिन धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाली सरकार और साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने का दावा करने वाले राजनीतिक दलों एवं सरकारी-गैर सरकारी संगठनों ने इस प्रतीक की अनदेखी कर दी। इनसे एक सवाल पूछने का मन करता है कि साम्प्रदायिक एकता एवं धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक के रूप में उनके पास कौन-कौन से नाम हैं और क्या रफी के योगदान एवं भारतीय जनमानस पर उनके प्रभाव अन्य नामों से किसी तरह से कम हंै? अगर ऐसा नहीं है तो आखिर हर गली, हर चैराहे, हर संस्थान एवं हर प्रतिष्ठान को किसी न किसी के नाम से जोड़ देने वाले इस देश में कोई स्मारक, कोई पुस्तकालय और कोई संस्थान मोहम्मद रफी के नाम से स्थापित करने के बारे में कोई पहल क्यों नहीं हुयी? हालांकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान रफी के योगदानों को समझने की दिशा में कुछ स्तरों से कोशिशें शुरू हुयी हैं। यह पुस्तक भी इसी दिशा में एक विनम्र कोशिश है और यह पाठकों को तय करना है कि यह कोशिश कितनी सार्थक रही। हमें इस बात का खेद है कि खराब नेटवर्किंग एवं वितरण व्यवस्था के कारण यह पुस्तक बाजार में उपलब्ध नहीं करायी जा सकी। कई लोगों को यह पुस्तक हासिल करने के लिये काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। कई लोगों को तो दूसरे शहरों या कस्बों से यह पुस्तक प्राप्त करने के लिये दिल्ली आना पड़ा या दिल्ली में रहने वाले रिश्तेदारों/दोस्तों के मार्फत मंगानी पड़ी। इस पुस्तक के पहले संस्करण की प्रतियांें के समाप्त हो जाने के कारण काफी संगीत प्रेमियों को यह पुस्तक उपलब्ध नहीं हो पायी। इस पुस्तक के लिये संगीत प्रेमियों को जो दिक्कतें उठानी पड़ीं उसके लिये हमें खेद है और पुस्तक के दूसरे संस्करण के साथ ऐसी दिक्कतें नहीं हांे इसकी पूरी कोशिश की जायेगी। फिर भी तमाम दिक्कतों एवं कमियों के बावजूद बहुत कम समय के भीतर देश के विभिन्न शहरों यहाँ तक कि दूसरे देशों में रहने वाले काफी संगीतप्रेमियों तक यह पुस्तक पहुंच गयी। इसके लिये लेखक खास तौर पर ूूूण्उवीकतंपिण्बवउ एवं ूूूण्मजमतदंसतंपिण्बवउ के संचालकों का आभारी है जिन्होंने उक्त साइटों पर इस पुस्तक के बारे में विस्तृत जानकारियां प्रसारित कीं। इस पुस्तक के पहले संस्करण के वितरण में विशेष योगदान के लिये लेखक बिन्नू नैयर, उमेश माखीजा, पी नारायणन, जोरावर चुगानी और त्रिलोकी नाथ जैसे रफी प्रेमियों का खास तौर पर आभारी है। इस पुस्तक के लिये पी नारायणन ने बेंगलूर और शशांक चिकरमने ने मुंबई से दुर्लभ सामग्रियाँ एवं जानकारियाँ भेजीं। इस दूसरे संस्करण में उन त्रुटियों एवं कमियों को दूर कर दिया गया है जो पहले संस्करण में जल्दबाजी के कारण रह गयी थीं। इसके लिये हम संगीत में खास रुचि रखने वाले पत्राकार अजय विश्वकर्मा के आभारी हैं। नये संस्करण में कुछ नयी सामग्रियाँ एवं जानकारियाँ डाली गयी हंै। इसके बावजूद एक लेखक के तौर पर मुझे लगता है कि अभी भी ऐसी काफी जानकारियाँ एवं सामग्रियाँ हैं जो इस दूसरे संस्करण में भी आने से रह गयी हैं। इसका कारण एक लेखक की अपनी सीमायें हैं। इसका एक दूसरा कारण यह है कि मोहम्मद रफी के विविध आयामी गायन एवं व्यक्तित्व को किसी पुस्तक में समेटना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है, फिर भी अगर संगीत प्रेमियों को इस पुस्तक को पढ़ कर मोहम्मद रफी के बारे में जानने की प्यास थोड़ी सी भी बुझ पाये तो मैं अपनी मेहनत सफल समझूँगा।
- विनोद विप्लव
जनवरी, 2008
Tuesday, June 9, 2009
A short film on Mohammad Rafi
नई दिल्ली। सरकार ने आखिरकार करोड़ों संगीत प्रेमियों के चहेते पार्श्व गायक मोहममद रफी के जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर करने वाली 70 मिनट की एक लघु फिल्म बनाकर इस महान गायक के प्रशंसकों की वर्षो पुरानी आस पूरी की है। यह फिल्म शीघ्र ही सिनेमाघरों एवं सीडी और वीसीडी के जरिये लोगों के सामने होगी।
इस फिल्म का निर्माण एवं निर्देशन करने वाले फिल्म्स डिविजन के मुख्य निर्माता कुलदीप सिन्हा ने बताया कि यह फिल्म करीब दो सप्ताह पूर्व ही बनकर तैयार हुई है। पिछले दिनों मुंबई में यह फिल्म सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा सहित फिल्म जगत की कई हस्तियों को दिखाई गई। अब फिल्म विभिन्न फिल्मोत्सवों में भेजी जा रही है।
दिल्ली में अगले सप्ताह यह फिल्म इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, फिल्म्स डिविजन सभागार और प्रेस क्लब आफ इंडिया जैसे कई स्थानों पर दिखायी जाएगी। इस फिल्म को यहां 17 अप्रैल से मैजिक लैटर्न फाउंडेशन की ओर आयोजित हो रहे तीन दिन के फिल्मोत्सव में दिखाए जाने की उम्मीद है।
सिन्हा ने कहा कि मोहम्मद रफी पर फिल्म का निर्माण उनके लिए वर्षो पुराने सपने का साकार होने जैसा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने 1980 में मोहम्मद रफी के निधन के समय ही इस महान गायक पर फिल्म बनाने के बारे में सोचा था और इस संबंध में उन्होंने मशहूर संगीतकार नौशाद से बात भी की थी जिन्होंने इस फिल्म के निर्माण के लिये पूरा सहयोग देने का वायदा किया लेकिन कुछ कारणों से यह फिल्म पहले नहीं बन पायी। उन्होंने बताया कि फिल्म में मोहम्मद रफी के जन्म से लेकर मृत्यु तक के विभिन्न पहलुओं, उनके संघर्षो, कामयाबियों, महत्वपूर्ण गीतों तथा उनके बारे में संगीत एवं फिल्म से जुड़ी विभिन्न हस्तियों के विचार आदि को शामिल किया गया है।
Note - This film is avaible in CD/VCD also with Film Division. To get copy of CD/VCD you can contact Film Division in Mumbai or Delhi. For other more information in this regard you can contact Vinod Viplav at 09868793203 or Email- screenindia@gmail.com
Saturday, June 6, 2009
भड़ास4मीडिया पर मेरी आवाज सुनो की चर्चा
ज बहुत कम पत्रकार एवं मीडियाकर्मी हैं जो सृजनात्मक लेखन को महत्व देते हैं और इसे अपने जीवन का ध्येय मानते हैं। इसके पीछे वजह है, लेखन से कुछ न हासिल होने की मानसिकता का व्याप्त होना। यह मानसिकता फली-फूली है बाजार के बढ़ते दबदबे के चलते। बावजूद इसके, कुछ पत्रकार आज भी नियमित लेखन में सक्रिय हैं। उनकी लेखनी से यदा-कदा बहुमूल्य रचनाओं का सृजन होता रहता है। ऐसे ही हैं विनोद विप्लव। रफी पर लिखी गई इनकी किताब संगीत प्रेमियों के लिए अमूल्य धरोहर बन गई है।
‘मेरी आवाज सुनो’ शीर्षक से प्रकाशित यह पुस्तक अमर गायक मोहम्मद रफी की जीवनी है। यह न केवल हिन्दी बल्कि किसी भी भाषा में इस महान गायक की पहली जीवनी है। मोहम्मद रफी की आवाज का जादू उनके गुजरने के करीब तीन दशक बाद भी करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिल-ओ-दिमाग पर राज कर रहा है। पार्श्व गायन के सरताज मोहम्मद रफी का महत्व केवल इसलिए नहीं हैं कि उन्होंने हजारों की संख्या में हर तरह के गीत गाए और अपने गीतों के जरिये जीवन के विभिन्न पहलुओं को अभिव्यक्ति दी, बल्कि इसलिए भी है कि सामाजिक, जातीय एवं धार्मिक संकीर्णताओं के इस दौर में वह इंसानियत, मानवीय मूल्यों, देशप्रेम, धर्मनिरपेक्षता एवं साम्प्रदायिक सदभाव के एक मजबूत प्रतीक हैं। उनके गाए गए गीत नैतिक, भावनात्मक एवं सामाजिक अवमूल्यन के आज के दौर में जनमानस को इंसानी रिश्तों, नैतिकता और इंसानियत के लिये प्रेरित कर रहे हैं।
यह दुर्भाग्य की बात है कि 31 जुलाई 1980 को मोहम्मद रफी के गुजरने के बाद से कई दशक बीत जाने के बाद भी इतने बड़े गायक के बारे में एक पुस्तक लिखने के लिए किसी ने जहमत नहीं उठायी। इस काम को आखिरकार एक पत्रकार ने, हिन्दी के पत्रकार ने अंजाम दिया। मोहम्मद रफी के चाहने वालों के बीच इस पुस्तक की मांग इस कदर हुई कि इसका पहला संस्करण कुछ दिनों में समाप्त हो गया। जनवरी 2008 में इसका दूसरा संस्करण निकाला गया। हिन्दी में प्रकाशित इस पुस्तक को तमिल, तेलुगू, बंगला, अंग्रेजी जैसी भाषाओं के बोलने-पढने वालों ने मंगवा कर पढ़ा। दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले, 2008 में रफी साहब की इस बायोग्राफी की धूम रही। इस पुस्तक ने बिक्री का रेकार्ड कायम किया।
विनोद विप्लव कहते हैं कि एक लेखक के लिये इससे बड़ा ईनाम व संतोष और क्या हो सकता है कि अपने जीवन के अंतिम चरण से गुजर रही एक महिला ने यह पुस्तक पढने के बाद टेलीफोन करके बताया कि इसे पढ़कर उसका जीवन धन्य हो गया। उसने कहा कि यह पुस्तक लिखकर आपने उन जैसे रफी प्रेमियों पर अहसान किया। मुक्तसर में रहने वाली अवतार कौर नाम की इस महिला ने दिल्ली में रहने वाली अपनी पुत्री के मार्फत यह पुस्तक मंगायी। यह पुस्तक पढ़कर इतनी प्रभावित हुई कि दिल्ली आई तो लेखक से मिलना उनके विशेष कार्यक्रम में शामिल था। वह लेखक के लिये रफी साहब के गाये पंजाबी गानों के तीन दुर्लभ कैसेटें लेकर आई थी। वे कैसेट लेखक के लिए सरकारी-गैर सरकारी अकादमियों से मिलने वाले बड़े से बड़े ईनामों से भी बढ़कर थी।
विनोद विप्लव के अनुसार अपने माता-पिता से दूर दूसरे शहर में कॉलेज के छात्रावास में रहकर पढाई करने वाला एक छात्र छुट्टियों में घर इसलिए नहीं गया क्योंकि उसे डर था कि वह घर चला गया तो कूरियर से मंगाई जाने वाली रफी की पुस्तक उसे न मिले। लखनउ में रहने वाले एक पुलिस कमिशनर को जिस दिन इस किताब के बारे में पता चला, उसी दिन अपने एक परिचित को दिल्ली भेजकर यह पुस्तक मंगाई। सूरीनाम में रहने वाले एक रफी प्रेमी ने तो यह पुस्तक हासिल करने के लिये दिल्ली आने का कार्यक्रम बना लिया। विनोद विप्लव ने ऐसे कई उदाहरण गिनाए। इंटरनेट, टेलीविजन, मोबाइल, सेटेलाइट रेडियो जैसे संचार माध्यमों के जमाने में जब हर दिन मनोरंजन और जानकारियों के एक से बढ़ कर एक माध्यम सामने आ रहे हैं और लोग पुस्तकों से कटते जा रहे हैं, वैसे समय में किसी पुस्तक के प्रति इस कदर की बेकरारी निश्चित तौर पर विस्मयकारी है।
आम तौर पर हिन्दी किताबों की अंग्रेजी के अखबारों में कम चर्चा होती है, लेकिन प्रमुख अखबार द हिन्दू ने इस पुस्तक के महत्व को देखते हुये इसके के बारे में दो बार आलेख प्रकाशित किए। इस बीच, http://www.indiaebooks.com नामक वेबसाइट पर यह पुस्तक पीडीएफ स्वरूप में उपलब्ध कराई गई है। जो भी लोग इस पुस्तक को अपने कम्प्यूटर पर डाउनलोड करना चाहते हैं या उसका प्रिंट लेना चाहते हैं, वे आगे दिए गए लिंक पर जा सकते हैं। इस पुस्तक को डाउनलोड करने से वेबसाइट पर रजिस्टर कराना होगा। संबंधित लिंक निम्नलिखित है–
http://www.indiaebooks.com/userpages/detail.aspx
मोहम्मद रफी के चाहने वालों की प्रमुख वेबसाइट http://www.mohdrafi.com पर ‘मेरी आवाज सुनो’ की चर्चा पढने के लिये निम्न लिंक्स पर-
mohdrafi.com - meri-awaaz-suno- second-edition-of-the-biography-of-mohammad-rafi
mohdrafi.com-meri-awaaz-suno-biography-of-legendary-singer-mohammad-rafi
टेलीविजन चैनलों पर 'मेरी आवाज सुनो' के विमोचन की खबरें देखने के लिये इन पर क्लिक करें--
http://in.youtube.com/watch?v=EPSbMSicOL8
http://in.youtube.com/watch?v=tDTZFnjp1w4
Above article was published on Bhadas4Media on Friday, 14 November 2008 01:26
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